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________________ जो पाप-कर्मों से निवृत्त हैं, वे निदान रहित कर्म बन्धन के मूल से मुक्त कहे गए हैं। 58. धर्म कहाँ ? गामेवाअदुवारणे,नेवगामेनेवरणेधम्ममाऽऽयाणह। . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 124) - आचारांग 1/8/202 धर्म गाँव में होता है अथवा जंगल में ? वस्तुत: वह न तो गाँव में होता है और न ही जंगल में । वह तो आत्मा में है अर्थात् सम्यग् आचरण को धर्म जानो। 59. जीव-हिंसा जे वेऽन्ने एएहिं काएहिं दंडं समारंभंति, तेसि पि वयं लज्जामो । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 124] . - आचारांग - 1/84/203 यदि कोई अन्य भिक्षु भी जीव-निकाय की हिंसा करते हैं तो उनके इस जघन्य कार्य से भी हम लज्जित होते हैं। 60. देह की पुष्टि और क्षीणता आहारोवचया देहा परिसहा पभंगुरा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 126] - आचारांग - 1/83210 शरीर आहार से बढ़ता है; पुष्ट होता है और परिषहों से क्षीण होता है। 61. मैं अकेला एगे अहमंसि, न मे अस्थि कोइ, नयाऽहमवि कस्सवि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 127] - आचारांग - 1/8/6/222 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 71
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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