________________
62.
मैं एक हूँ अकेला हूँ । न कोई मेरा है, और न मैं किसी का हूँ । आत्मा एकाकी
एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा ।
66.
-
अपनी आत्मा को एकाकी ही अनुभव करें ।
63. जीवन अनाकांक्षा
64. मृत्यु
जीवियं नाभिकंखेज्जा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 130]
आचारांग - 1/8/8/19
पण्डित साधक जीने की आकांक्षा नहीं करें ।
से निष्काम
―
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 127] आचारांग 1/8/6/222
मरणं नोवि पत्थए ।
-
-
65. तितिक्षा
पंडित साधक मृत्यु
-
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 130]
आचारांग
-
1/8/8/19
की भी कामना नहीं करें ।
अप्पाहारे तितिक्खए ।
-
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 130]
1/8/8/18
आचारांग
साधक अल्पाहार करता हुआ सहनशीलता - तितिक्षाभाव रखें ।
कषाय-कृशता
कसाये
-
पयणू किच्चा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 130 ] आचारांग 1/8/8/18
कषायों को पतला (कृश) करें ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 72