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- उत्तराध्ययन - 5/22 चाहे भिक्षु हो या गृहस्थ हो, जो सदाचारी है; वह देवगति पाता
है
54. आत्मा प्रसन्न कैसे ?
तुलिया विसेसमायाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेधावी, तहा भूएण अप्पणा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 123]
- उत्तराध्ययन 530 मेधावी साधक पहले अपने आपको तोले । उसके बाद बाल मरण से पण्डित मरण की विशेषता जानें और फिर सकाम मरण को स्वीकार कर दयाप्रधानधर्म क्षमादि गुणों के द्वारा अपनी आत्मा को प्रसन्न रखें । 55. अनुद्विग्न न संतसंति मरणन्ते सीलवंता बहुस्सुआ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 123]
- उत्तराध्ययन - 5/29 बहुश्रुत ज्ञानी और सदाचारी साधक मृत्युकाल में भी उद्विग्न नहीं होते हैं। 56. धर्म धम्ममायाणह।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 124)
- आचारांग - 1/84/202 धर्म को समझो। 57. कर्म-बन्धन से मुक्त जे निबुडा पावेहि कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 124] ____ एवं [भाग 7 पृ 494]
- आचारांग - 1/48 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 70