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________________ 47. - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 118] - उत्तराध्ययन - 5/5 अज्ञानी जन ऐसा कहते हैं कि परलोक तो हमने देखा नहीं हैं, किन्तु यह विद्यमान काम-भोग का आनन्द तो चक्षु-दृष्ट है अर्थात् प्रत्यक्ष आँखों के सामने है। 46. काम से संक्लेश कामभोगाणुराएणं केसं संपडिवज्जइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 118) - उत्तराध्ययन 5/1 काम-भोग से जीव क्लेश पाता है । अज्ञानी शोकाकुल जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा भहापहं । विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भगम्मि सोयइ ॥ एवं धम्मं विउक्कम्म, अहम्मं पडिवज्जिया । बाले मच्चु-मुहं पत्ते अक्खे भग्गे व सोयई ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 120] - उत्तराध्ययन 5405 जैसे-कोई गाड़ीवान् समतल राजपथ को जानता हुआ भी उसे छोड़कर विषम दुरुह मार्ग से चल पड़ता है और गाड़ी की धूरी टूट जाने के पश्चात् शोकाकुल होता है, वैसे ही धर्म का उल्लंघन कर जो अज्ञानी अधर्म के कुमार्ग को स्वीकार कर लेता है । वह मृत्यु के मुख में पड़ने पर उसी प्रकार शोक करता है जिसप्रकार धूरी टूट जाने पर गाड़ीवान करता है। 48. भय से संत्रस्त तओ से मरणंतम्मि बाले संतस्सइ भया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 120] - उत्तराध्ययन - 546 अज्ञानी जीव मरणान्त समय में भय से संत्रस्त होता है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6.68
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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