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36. तिरस्कार-वर्जन न बाहिरं परिभवे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 106]
- दशवकालिक 8/30 दूसरों का तिरस्कार मत करो। 37. ज्ञान में भी निरभिमान सुयलाभे न मज्जेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 106]
- दशवकालिक - 8/30 श्रुतज्ञान प्राप्त होने पर भी अभिमान मत करो । 38. पाप-जननी कौन ? अदु इंखिणिया उपाविया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 107]
- सूत्रकृतांग Innn निन्दा पापों की जननी है। 39. निरभिमानी मुनि मुणी ण मिज्जइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 107]
- सूत्रकृतांग - 1222 मुनि अभिमान नहीं करता है। . 40. तिरस्कार से भ्रमण जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 107]
- सूत्रकृतांग Innn जो दूसरों का तिरस्कार करता है, वह संसार-अटवी में दीर्घकाल तक भटकता रहता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6, 66