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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 50]
ज्ञानसार 2/7
सहज शीतलता को पोषण करनेवाला एक बिन्दु मात्र ज्ञानामृत का भी बड़ा प्रभाव होता है तो फिर जो ज्ञानामृत में पूर्ण रूप से डूबा हुआ हो, उसकी तो भला हम किन शब्दों में स्तुति करें ? 25. मदिरा - पान - हानि
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27.
मद्यं पुनः प्रमादाङ्गं, तथा सच्चित्तनाशनम् । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 60] हारिभद्रीयाष्टक 19/1
मद्य प्रमाद का कारण है और शुभ चित्त का नाश करनेवाला है ।
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26. मुनिवर मध्यस्थ
समशीलं मनो यस्य स मध्यस्थो महामुनिः ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 64] ज्ञानसार - 16/3
जिनका मन समस्वभावी हैं, ऐसे मुनिवर वास्तव में मध्यस्थ हैं ।
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मन: बछड़ा-बन्दर
मनोवत्सो युक्तिगवीं, मध्यस्थस्यानुधावति । तामाकर्षति पुच्छेन, तुच्छाग्रहमनः कपिः ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 64]
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ज्ञानसार - 16/2
मध्यस्थ पुरुष का मनरूपी बछड़ा युक्ति रूपी गाय के पीछे दौड़ता है, जबकि दीन-हीन वृत्तिवाले पुरुष का मनरूपी बन्दर युक्तिरूपी गाय की पूँछ पकड़कर पीछे खींचता है ।
28. मध्यस्थ दृष्टि निष्पक्षपाती
स्वागमं रागमात्रेण, द्वेषमात्रात् परागमम् ।
न श्रयामः त्यजामो वा, किन्तु मध्यस्थया दृशा ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग पृ.64]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 63