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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 48] ज्ञानसार - 22
ज्ञानामृत के समुद्र-रूपी परमात्म स्वरूप में जिसका मन डूब गया हों, उसे अन्य विषय में भटकना विष के समान लगता है । 21. परब्रह्मलीन
परब्रह्मणि मग्नस्य, श्लथा पौद्गलिकी कथा | श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 48 ]
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ज्ञानसार 2/4
परमात्म स्वरूप में लीन
मनुष्य को
लगती है ।
22. गोता ज्ञान सरोवर का
ज्ञानमग्नस्य यच्छर्म, तद्वक्तुं नैव शक्यते ।
पुद्गल - सम्बन्धी बात नीरस
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 49]
ज्ञानसार 26
ज्ञान-सरोवर में आकण्ठ डूबे हुए व्यक्ति को जो सुख सन्तोष प्राप्त
होता है, वह मुख से कहा नहीं जा सकता । ज्ञान-मग्न का सुख अवर्णनीय और है ।
अनुपम
23. पीयूषवर्षी योगीश्वर
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यस्य दृष्टि: कृपावृष्टिर्गिरः शमसुधाकिरः ।
तस्मै नमः शुभज्ञानध्यानमग्नाय योगिने ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 50] ज्ञानसार 2/8
जिनकी दृष्टि कृपा की वृष्टि है और जिनकी वाणी उपशम रूपी अमृत का छिड़काव करनेवाली है, ऐसे प्रशस्त - ज्ञान - ध्यान में सदा लीन रहनेवाले उन महान् योगीश्वर को नमस्कार हो ।
24. ज्ञान - पीयूष में मग्न
शमशैत्यपुशो यस्य विप्रुषोऽपि महाकथा । किं स्तुमो ज्ञान - पीयूषे, तस्य सर्वाङ्ग-मग्नताम् ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 62