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________________ 9. किसी के भी साथ वैर - विरोध मत करो । सर्वत्र अहिंसा उड्ढं अहे तिरियं च, जे केइ तस - थावरा । सव्वत्थ विरतिं कुज्जा, संति निव्वाणमाहियं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 43] सूत्रकृतांग 12121 - उर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं; सर्वत्र उन सब की हिंसा से दूर रहना चाहिए । वैर की शान्ति को ही निर्वाण कहा गया है । 10. ज्ञानी का सार एयं खु णाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 43 ] सूत्रकृतांग - 11110 किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करना ही ज्ञानी होने का सार है । - 11. सम्यग्दर्शन, दीपस्तम्भ बुज्झमाणाण पाणाणं, किच्चं तणे ए कम्मुणा । आघाती साहु तं दीवं, पतिट्ठेसा पकुच्चई ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 45 ] सूत्रकृतांग - 11/23 मिध्यात्व अविरति आदि संसार - सागर के स्रोतों के प्रवाह में 1 बहते हुए तथा अपने कर्मों के द्वारा कष्ट पाते हुए प्राणियों के लिए सम्यग्दर्शन (निर्वाण - मार्ग) ही विश्राम स्थान है । तत्त्वज्ञों का कथन है कि सम्यग्दर्शन ( निर्वाण - मार्ग) ही मोक्ष - प्राप्ति का आधार है । 12. समाधि से दूर बुद्धामोत्ति य मन्नंता, अंतर ते समाहिए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 45] सूत्रकृतांग - 11/25 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 59 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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