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किसी के भी साथ वैर - विरोध मत करो ।
सर्वत्र अहिंसा
उड्ढं अहे तिरियं च, जे केइ तस - थावरा । सव्वत्थ विरतिं कुज्जा, संति निव्वाणमाहियं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 43] सूत्रकृतांग 12121
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उर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं; सर्वत्र उन सब की हिंसा से दूर रहना चाहिए । वैर की शान्ति को ही निर्वाण कहा गया है ।
10. ज्ञानी का सार
एयं खु णाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 43 ] सूत्रकृतांग - 11110
किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करना ही ज्ञानी होने का सार है ।
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11. सम्यग्दर्शन, दीपस्तम्भ
बुज्झमाणाण पाणाणं, किच्चं तणे ए कम्मुणा । आघाती साहु तं दीवं, पतिट्ठेसा पकुच्चई ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 45 ] सूत्रकृतांग - 11/23
मिध्यात्व अविरति आदि संसार - सागर के स्रोतों के प्रवाह में
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बहते हुए तथा अपने कर्मों के द्वारा कष्ट पाते हुए प्राणियों के लिए सम्यग्दर्शन (निर्वाण - मार्ग) ही विश्राम स्थान है । तत्त्वज्ञों का कथन है कि सम्यग्दर्शन ( निर्वाण - मार्ग) ही मोक्ष - प्राप्ति का आधार है ।
12. समाधि से
दूर
बुद्धामोत्ति य मन्नंता, अंतर ते समाहिए ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 45] सूत्रकृतांग - 11/25
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 59
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