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________________ अज्ञानवश अपने आपको ज्ञानी समझनेवाला समाधि से बहुत दूर 13. मुनि-प्रवृत्ति, मोक्ष प्रधान निव्वाणं परमं बुद्धा, णक्खत्ताणं व चंदिमा । तम्हा सदा जए दंते, निव्वाणं संघए मुणी ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 45] - सूत्रकृताग - 1122 जैसे-चन्द्रमा सभी नक्षत्रों में प्रधान है, वैसे ही मोक्ष भी सभी पुरुषार्थों में प्रधान है । अतएव मुनि को सदा यतनाशील और जितेन्द्रिय होकर निर्वाण को केन्द्र में रखकर सभी प्रवृत्तियाँ करनी चाहिए। 14. मोक्ष-मार्ग-साधना सदा जए दंते, निव्वाणं संघए मुणी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 45] - सूत्रकृतांग - 11/22 सदा जितेन्द्रिय और संयमशील होता हुआ मुनि निर्वाण की साधना करें। 15. धर्मोपदेष्टा कौन ? आयगुत्ते सया दंते, छिन्नसोए अणासवे । जे धम्मं सुद्धमक्खाइ, पडिपुन्नमणेलिसं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 45] - सूत्रकृतांग - 11/24 जो सदा आत्म-गुप्त तथा इन्द्रिय-दमन करनेवाला है, छिन्नस्रोत एवं अनास्रव है; वही इस शुद्ध, पूर्ण एवं अनुपम धर्म का उपदेश करता है । 16. कंकपक्षीवत् पापी-अधम विसएसणं झियायंति, कंका वा कलुसाहमा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 46] - सूत्रकृतांग In128 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6, 60
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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