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________________ "मैं जिसके माँस को यहाँ खाता हूँ, वह मुझे भी परलोक में खायेगा ।" मनीषीगण 'मांस' शब्द का यही मांसत्व बताते हैं । 5. समान फल किसे ? वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन, यो यजेत शतं समाः । मांसानि च न खादेद्य-स्तयोस्तुल्यं भवेत् फलम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 34] - मनुस्मृति 5/53 प्रत्येक वर्ष सौ बार अश्वमेध यज्ञ करनेवाले और मांस भक्षण नहीं करने वाले इन दोनों पुरुषों को बराबर फल मिलता है । 6. ब्रह्मचर्य से उत्तम गति एक रात्रौषितस्यापि, या गति ब्रह्मचारिणः । न सा क्रतुसहस्त्रेण, प्राप्तुं शक्या युधिष्ठिरः !॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 34] ___ - स्याद्वादमंजरी से उद्धृत पृ. 209 हे युधिष्ठिर ! एक रात ब्रह्मचर्य से रहनेवाले पुरुष को जो उत्तम गति मिलती है, वह गति हजारों यज्ञ करने से भी नहीं मिलती। . 7. वैर-विरोध-त्याग पभू दोसे नीरा किच्चा; ण विरुज्झेज्ज केणई । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो ॥ ___- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 43] - सूत्रकृतांग - Inin2 जितेन्द्रिय साधक मिथ्यात्व आदि दोषों को दूर करके किसी भी प्राणी के साथ जीवनभर मन-वचन और काया से वैर-विरोध न करें । 8. ना काहू से वैर ण विरुज्झेज्ज केणई। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 43] - सूत्रकृतांग - Inin2 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 58
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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