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________________ मंगल का अर्थ मंगिज्जएऽधिगम्मइ, जेण हिअं तेण मंगलं होइ । अहवा मंगो धम्मो, तं लाइ तयं समादत्ते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 8] - विशेषावश्यक भाष्य 22 जिसके द्वारा हित की याचना एवं प्राप्ति होती है; उसे 'मंगल' कहते हैं अथवा मंगल का अर्थ धर्म है और उस धर्म को जो ग्रहण करता है, वह मंगल है। _ 'मंगल' शब्द की व्युत्पत्ति मां गालयति भवादिति मङ्गलं संसारादपनयतीत्यर्थः । अथवा शास्त्रस्य मा भूद्गलो विघ्नोऽस्मादिति मङ्गलम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 9] _ - विशेषावश्यक भाष्य 24 टीका । जो मुझे संसार से दूर करता है वह 'मंगल' है अथवा 'मा' निषेधार्थ है और 'गल' विघ्नवाचक है । अत: 'मंगल' का अर्थ होता है - शास्त्र के प्रारम्भ में विघ्न न हो। .... 3. मङ्गल चतुष्क चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं केवलीपण्णत्तो धम्मो मंगलं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 16] - आवश्यक सूत्र - 4 मंगल चार हैं-अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवली प्ररुपित धर्म । 'माँस' शब्द की निरुक्ति मां स भक्षयिताऽमुत्र, यस्य मांस मिहाम्यहम् । एतन्मांसस्य मांसत्वं, प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 32] - मनुस्मृति 5/55 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 57
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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