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क्रमाङ्क
सूक्ति नम्बर
मुक्ति शीर्षक 'मंगल' शब्द की व्युत्पत्ति मंगल चतुष्क
385
386
माँस शब्द की निरुक्ति
388
मैं अकेला मैं और मेरा
389
390
311
यथा आकृति तथा गुण यथार्थ उपदेष्टा
391
544
392
434
योग्य में योग्य का आधान
596
रहो कच्छपवत्
394
300
395
396
397
301 303 304 307 308 336
रात्रि भोजन-त्याग रात्रि भोजन किसके समकक्ष ? रात्रि-भोजन त्याज्य रात्रि-भोजन-फल रात्रि-वजित कार्य रात्रि-भोजन-वजित राग-द्वेषी भवपार नहीं राजहंसवत् महामुनि
398
399
400
401
363
402
373
403
रुपासक्ति-परिणाम रुग्ण-सेवा से निर्जरा
403
605
605
309
रोगोत्पत्ति-कारण
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 257