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क्रमा सूक्ति नम्बर
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100
535
537
35933
69
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315
330
366
603
चा
139
402
छि
ज
जा
जि
जी
सक्ति शीर्षक
चरित्र महान्
चारित्र दुष्कर
चारित्र, कर्मरोधक
छिपाएँ नहीं !
छिद्रान्वेषी शिष्य
जन्म-मरण-चक्र
जय-पराजय
जाना है एकदिन
जिन वचन में अप्रमत्त
जितेन्द्रिय पूज्य
जिनवचन का मूल
जीव - हिंसा
जीवन अनाकांक्षा
जीवन-मृत्यु में अनासक्त
जीव-दुर्दशा
जीवाजीवाधार
जीव, सुखप्रिय
जीवन अस्थिर, जलबिन्दुवत् जीव-स्वरूप
जैसा संग वैसा रंग
जैसा योग वैसा बंध
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 247