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________________ 583. निष्पाप सत्य सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1394] - सूत्रकृतांग 1/6/23 सत्य वचनों में भी अनवद्य सत्य अर्थात् हिंसा रहित सत्यवचन 584. निर्वाण श्रेष्ठ निव्वाण सेट्ठा जह सव्वधम्मा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष. [भाग 6 पृ. 1394] - सूत्रकृतांग 1/6/24 सभी धर्मों में निर्वाण को श्रेष्ठ कहा गया है । 585. आस्रव-संवर क्या ? पमाय कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1404] - सूत्रकृतांग 1/83 प्रमाद को कर्म-आस्रव और अप्रमाद को अकर्म - संवर कहा है। 586. असंयत आरओ परओ वाऽवि, दुहाऽविय असंजया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1404] - सूत्रकृतांग 1/8/6 कुछ लोग लोक और परलोक-दोनों ही दृष्टियों से असंयत होते हैं । 587. अज्ञानी, पापी राग दोसस्सिया बाला, पावं कुव्वंति ते बहुं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1405] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 203 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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