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579. भोजन से अतृप्त
तणकटेण व अग्गी, लवणजलो वा नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को, तिप्पेउं भोयणविहीए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1257]
- आतुरप्रत्याख्यान 57 जिसप्रकार तृण और काष्ठ से अग्नि तथा हजारों नदियों से समुद्र तृप्त नहीं होता है, उसीप्रकार रागासक्त आत्मा भोजन विधि से तृप्त नहीं हो पाती है। 580. वीतरागता-फल
वीयरागयाएणं णेहाणु बंधणाणि तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिदइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1336]
- उत्तराध्ययन 29/45 वीतरागता से स्त्री-पुत्र, सगे-सम्बन्धी आदि का स्नेह और धनधान्य आदि की तृष्णा नष्ट हो जाती है । 581. धर्म, दीपक दीवे व धम्मं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1391] __- सूत्रकृतांग 1/6/4
धर्म दीपक के समान है। 582. ब्रह्मचर्य सवोत्तम तप तवेसु व उत्तम बंभचे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1394]
- सूत्रकृतांग 1/6/23 तपों में सर्वोत्तम तप-ब्रह्मचर्य है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 202