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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1180]
- सूत्रकृतांग 144/24 जिनाज्ञानुसार शुद्ध वचन बोलो । 556. निर्दोष वचन अभिसंथए पावविवेग भिक्खू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1180]
- सूत्रकृतांग 144/24 भिक्षु पाप का विवेक रखता हुआ निर्दोष वचन बोले । 557. प्रस्तुति-शास्त्रानुरूप
अलुसए णो पच्छन्नभासी, णो सुत्तमत्थं च करेज्जताई । सत्थार भत्ती अणुवीइवायं, सुयं च सम्म पडिवाययंति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1181]
- सूत्रकृतांग 114/26 - साधु आगम के अर्थ को दूषित न करें तथा वह सिद्धान्त को छिपाकर न बोले । आत्मत्राता-स्व परत्राता साधु सूत्रार्थ को अन्यथा (उलट-पुलट) न करें । शिक्षादाता - प्रशास्ता गुरु की सेवा-भक्ति का ध्यान रखते हुए सम्यक्तया सोच विचार कर कोई बात कहें, गुरु से जैसा सुना है, वैसा ही दूसरे के समक्ष सिद्धान्त या शास्त्रवचन का प्रतिपादन करें । 558. बोलो, मित
नातिवेलं वदेज्जा । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1181]
- सूत्रकृतांग 144/25 आवश्यकता से अधिक मत बोलो । 559. सम्यग्दृष्टि
से दिट्टिमं दिट्ठि ण लूसएज्जा । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 195 )