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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1179]
- सूत्रकृतांग 149 प्रज्ञावान् पुरुष किसी की भी हंसी-मजाक नहीं करें । 546. बोलो, निश्चयात्मक नहीं ! ण या ऽऽ सिया वाय वियागरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1179]
- सूत्रकृतांग 1449 साधक स्याद्वाद से रहित (निश्चयकारी) वचन न बोले । 547. अहंकार-प्रदर्शन हेय माणं ण सेवेज्ज पगासणं च ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1179]
- सूत्रकृतांग 1149 साधक गर्व न करे और न ही स्वयं को बहुश्रुत एवं महातपस्वी के ररूप में प्रकाशित करे । 548. मित-मधुर निरुद्धगं वावि न दीहइज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1180]
- सूत्रकतांग 144/23 थोड़े से में कही जानेवाली बात को व्यर्थ ही लम्बी न करें । 549. अनेकान्त युक्तवचन विभज्यवायं च वियागरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1180]
- सूत्रकृतांग 144/22 विचारशील पुरुष सदा विभज्यवाद अर्थात् स्यावाद युक्त वचन का प्रयोग करे । 550. निरपेक्ष साधक
णो तुच्छए णो य विकथइज्जा ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 193