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541. बोलो ! कर्कश नहीं ण यावि किंचि फरसं वदेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1178]
- सूत्रकृतांग 1440 तनिक भी कठोर भाषा मत बोलो । 542. असत् आचरण-वर्जन सेयं खु मेयं ण पमाय कुज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1178]
- सूत्रकृतांग 144N यह मेरे लिए निश्चय ही कल्याणकारी है, ऐसा समझाकर प्रमाद अर्थात् असत् आचरण नहीं करे । 543. निर्देशक गुरु सूरोदये पासति चक्खुणेव ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1178)
- सबकतांग 10403 सूर्योदय होने पर (प्रकाश होने पर) भी आँख के बिना नहीं देखा जाता है, वैसे ही स्वयं में कोई कितना ही चतुर क्यों न हो, किन्तु वह निर्देशक गुरु के अभाव में तत्त्वदर्शन नहीं कर पाता । 544. यथार्थोपदेष्टा णो छायए णो ऽवि य लूसएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1179]
- सूत्रकृतांग 1419 उपदेशक सत्य को कभी छिपाए नहीं, और न ही उसे तोड़-मरोड़ कर उपस्थित करे। 545. परिहास-वर्जन
ण या 5 वि पन्ने परिहास कुज्जा ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6• 192