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दशवैकालिक 9/3/12
जो अहंकार और क्रोध का त्याग करता है, वही पूज्य होता है
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533. ग्राह्य हेय क्या ?
गिण्हाहिं साधुगुण मुंच असाहू |
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सदगुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1174] दशवैकालिक 9/3/11
534. भाषा - विवेकी पूज्य ओहारणि अप्पिअकारिणि च,
भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1174] दशवैकालिक 9/3/9
जो निश्चयात्मक और अप्रियकारिणी भाषा का प्रयोग नहीं करता,
वही पूज्य है ।
535. जितेन्द्रिय पूज्य
जिइंदिए जो सहइ, स पुज्जो ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1174] दशवैकालिक 9/3/8
जितेन्द्रिय होता हुआ जो कटु वचनों को सहता है, वही पूज्य है । 536. मधुर वचन है माखन मिश्री
हितं मितं चापरुषं, ब्रुवतोऽनुविचिन्त्य च ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1175] द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका 29/5
सोच-विचार कर हित, मित और मृदु बोलना चाहिए ।
537. जिनवचन का मूल
विनयेन विना न स्या-ज्जिन प्रवचनोन्नतिः । पयः सेकं विना किं वा, वर्धते भूवि पादपः ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 190