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जैसे अग्निहोत्री अग्नि की शुश्रूषा करता हुआ जागृत रहता है ठीक वैसे ही आचार्य (गुरु) की शुश्रूषा करते हुए शिष्य को जागरुक रहना चाहिए। 524. वचन सहिष्णु अणासए जो उ सहिज्ज कंटए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवैकालिक 986 जो कानों में प्रवेश करते हुए वचन रूपी काँटों को सहन करता है, वहीं पूज्य है। 525. पूजनीय कौन ? गुरुं तु नासाययई स पुज्जो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवैकालिक 9/32 जो गुरु की आशातना नहीं करता, वही पूज्य है । 526. वही पूज्य संतोसपाहन्नरए स पुज्जो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवकालिक 93/ जो संतोष के पथ में रमता है, वहीं पूज्य है । 527. शिक्षा-प्राप्ति किसे ?
जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छई।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवैकालिक 92/22 जिसे ये दो बातें-विनीत को सम्पत्ति और अविनीत को विपत्ति ज्ञात है, वही कल्याणकारिणी शिक्षा प्राप्त कर सकता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 188