________________
लोहे के काँटे अल्पकाल तक दुःखदायी होते हैं और वे भी शरीर से सहजतया निकाले जा सकते हैं, किन्तु दुर्वचन रूपी काँटे जन्म-जन्मान्तर के वैर की परम्परा बढ़ानेवाले और महाभयकारी होते हैं । 520. पूज्य कौन ? अलद्धअं नो परिदेवइज्जा,
लद्धं न वीकत्थइ (वा) स पुज्जो ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवैकालिक 93/4 जो लाभ न होने पर खिन्न नहीं होता है और लाभ होने पर अपनी बढ़ाई नहीं हाँकता है, वहीं पूज्य है। 521. विनय-वर्तन रायणाहिएसुं विणयं पउंजे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवकालिक 8/41 एव 983 बड़ों (रत्नाधिक) के साथ विनयपूर्वक व्यवहार करो । 522. वही पूज्य जो छंदमाराहयई स पुज्जो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173]
- दशवकालिक 9AM जो गुरुजनों की भावनाओं का आदर करता है, वही शिष्य पूज्य होता है। 523. गुरु-शुश्रूषा में जागरूक
आयरिअं अग्गिमिवा हि अग्गी, सूस्सूसमाणो पडिजागरिज्जा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1173] - दशवैकालिक 9AM
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 187