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505. अवहेलना से अमुक्ति
सिया ह सीसेण गिरिं पि भिंदे, सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिया न भिदेज्ज व सत्तिअग्गं, न यावि मोक्खो गुरु हीलणाए ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1169] दशवैकालिक 919
संभव है शिर से पर्वत को भी छेद डाले, सिंह कुपित होने पर भी न खाये और भाले की नोक भी भेदन न करे, पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष कदापि सम्भव नहीं है ।
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506. गुरुकृपा तत्पर
आयरियपाया पुण अप्पसन्ना,
अबोहि आसायण नत्थि मोक्खो ।.
तम्हा अहाबाहसुहामिक्खीं, गुरुप्सायाभिमुहो रमेज्जा ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1169 ] दशवैकालिक 9110
आचार्य प्रवर के अप्रसन्न होने पर बोधि-लाभ नहीं होता । गुरु की आशातना से मोक्ष नहीं मिलता । इसलिए मोक्ष - सुख चाहनेवाला मुनि गुरु-कृपा (गुरु-प्रसन्नता) के लिए तत्पर रहे । 507 आशातना से अमुक्ति
मिलता ।
आसायणं नत्थि मोक्खो ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1169 ] दशवैकालिक 9175
आज्ञा-भंग में मोक्ष नहीं है अर्थात् आशातना करने से मोक्ष नहीं
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 183