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________________ 500. गुरु-आशातना, विनाश का कारण थंभा व कोहा व मयप्पमाया, गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे । सो चेव ऊ तस्स अभूइ भावो, फलं व कीअस्स वहाय होई ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1168] - दशवकालिक 94 जो मुनि अभिमान, क्रोध, माया या प्रमादवश गुरु के निकट रहकर विनय नहीं सीखता, उनके प्रति विनय का व्यवहार नहीं करता, उसका यह अविनय भाव बांस के फल की तरह स्वयं के लिए विनाश का कारण बनता 501. मुक्ति, असंभव सिओ हु से पावय नो डहिज्जा, आसी विसो वा कुविओ न भक्खे । सिआ विसं हालहलं न मारे, न आवि मुक्खो गुरु हीलणाए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1168 1169] - दशवैकालिक 9AM संभव है कदाचित् अग्नि न जलावे, संभव है कुपित विषधर न डसे और यह भी संभव है कि हलाहल विष भी मृत्यु का कारण नही बने, किन्तु गुरु की अवहेलना करनेवाले साधक के लिए मोक्ष कदापि संभव नहीं है। 502. गुरु-आशातना जे यावि मंदत्ति गुरुं वइत्ता डहरे इमे अप्पसुय त्ति नच्चा । हीले त्ति मिच्छं पडिवज्जमाणा, करेंति आसायणं ते गुरुणं ॥ _ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 181 अति पारस. खण्ड-6. 181
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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