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- उत्तराध्ययन 187 विनीत बुद्धिमान् शिष्य को शिक्षा देता हुआ ज्ञानी गुरु वैसे ही प्रसन्न होता है जैसे उत्तम अश्व (अच्छे घोड़े) पर सवारी करता हुआ
घुड़सवार ।
490. गुरु खिन्न
बालं सम्मइ सासंतो, गलिअस्समिव वाहए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1165]
- उत्तराध्ययन 137 अविनीत, बाल अर्थात् जड़ मूढ़ शिष्यों को शिक्षा देता हुआ गुरु उसीप्रकार खिन्न होता है जैसे अड़ियल या मरियल दुष्ट घोड़े पर चढ़ा हुआ घुड़सवार । 491. सुशिष्य-कुशिष्य परीक्षण
खड्डुयाहिं चेवडाहिं, अक्कोसेहिं वहेहि य । कल्लाणमणुसासंतं, पावदिट्ठित्ति मन्नइ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1165] •
- उत्तराध्ययन 1/38 गुरु मुझे ठोकरें (लात) मारते हैं, थप्पड़ लगाते हैं, मुझे कोसते हैं और पीटते हैं; इसप्रकार गुरुजनों के कल्याणकारी अनुशासन को पापदृष्टि शिष्य कष्टकारक मानता है । सुशिष्य की गुरु द्वारा कठोर परीक्षा लेने का यह एक तरीका है । इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने पर गुरु उस शिष्य को सुशिष्य मान लेते हैं। 492. विनीत-अविनीत-लक्षण
पुत्तो मे भाय नाइत्ति, साहू कल्लाण मन्नई । पावदिट्ठी उ अप्पाणं, सासं दासं व मन्नई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1165] - उत्तराध्ययन 1/39
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 178