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________________ - उत्तराध्ययन 1/28 प्रज्ञावान् शिष्य गुरुजनों की जिन शिक्षाओं को हितकर मानता है, दुर्बुद्धि दुष्ट अज्ञ शिष्य को वे ही शिक्षाएँ बुरी लगती हैं । 486. विनीत शिष्य जं मे बुद्धाऽणु सासंति, सीएण फरुसेण वा । मम लाभुत्ति पेहाए, पवओरा (तं) पडिस्सुणे ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1164] - उत्तराध्ययन 127 विनीत शिष्य-शिष्या का यह चिन्तन होता है कि तत्त्वदर्शी गुरु का मधुर व कठोर अनुशासन मेरे लाभ के लिए ही है । इसलिए मुझे उनका खूब ध्यान रखना चाहिए । सावधानी के साथ उसे सुनना चाहिए । 487. कठोर अनुशासन फरुसमप्पणुसासणं । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1164] - उत्तराध्यन 1/29 - अनुशासन चाहे कठोर ही क्यों न हो, अनुशासित किया जाने पर क्रोध न करें। 488. अनुशासित प्राज्ञ शिष्य अणुसासणमोवायं, . दुक्कडऽस्स य परेणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1164] - उत्तराध्ययन 1/28 दुष्कृत (पापकर्म) को दूर करनेवाला, गुरुजनों का उपाय युक्त अनुशासन प्राज्ञ शिष्य के लिए हित का कारण होता है । 489. गुरु प्रसन्न रमए पंडिए सासं, हयं भदं व वाहए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1165] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 177 )
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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