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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160]
- उत्तराध्ययन IN बाल अर्थात् अज्ञानी के साथ संपर्क, हँसी-मजाक, क्रीड़ा आदि नहीं करना चाहिए। 465. क्षमा-सेवन खंति सेवेज्ज पंडिए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160]
- उत्तराध्ययन 14 क्षमाशील बनो। 466. कम बोलो बहुयं माय आलवे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160]
- उत्तराध्ययन 100 बहुत नहीं बोलना चाहिए। 467. छिपाए नहीं !
आहच्च चंडालियं कटटु, न निण्हविज्ज कण्हुइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160]
- उत्तराध्ययन 111 यदि साधक कभी कोई चाण्डलिक-दुष्कर्म कर ले, तो फिर उसे छिपाने की चेष्टा न करे । 468. है, वैसा कहो
कडं कडे त्ति भासिज्जा, अकडं नो कडे त्ति य ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160]
- उत्तराध्ययन 11 बिना किसी छिपाव या दुराव के किए हुए कर्म को किया हुआ कहिए तथा नहीं किए हुए कर्म को नहीं किया हुआ कहिए ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-60 172