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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1159) - उत्तराध्ययन 1/6 आत्मा का हित चाहनेवाला साधक स्वयं को विनय-सदाचार में स्थिर करे। 460. सार सार को गहीले अट्ठ जुत्ताणि सिक्खिज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1159] - उत्तराध्ययन 1/8 अर्थयुक्त (सारभूत) बातें ही ग्रहण करना चाहिए। 461. थोथा देय उड़ाय निरस्टाणि उवज्जए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1159] - उत्तराध्ययन 1/8 निरर्थक कार्यों/बातों को छोड़ देना चाहिए । 462. विनयान्वेषण तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेज्जओ। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1159] - उत्तराध्ययन 14 विनय की खोज करना चाहिए जिससे कि शील-सदाचार की प्राप्ति हो। 463. अनुशासन प्रिय अणुसासिओ न कुप्पिज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160] - उत्तराध्ययन 14 गुरुजनों के अनुशासन से कुपित-क्षुब्ध नहीं होना चाहिए । 464. अज्ञानी-संसर्ग वयं बालेहिं सह संसग्गि, हासं कीडं च वज्जए । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 171
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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