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________________ जिलप्रकार सड़े हुए कानोंवाली कुतियाँ जहाँ भी जाती है, निकाल दी जाती है उसीप्रकार दुःशील, उद्दण्ड और मुखर-वाचाल मनुष्य भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है। . 456. अविनीत कौन ? आणाऽनिद्देस करे, गुरुणमणुववाय कारए । पडिणीए असंबुद्धे, अविणीएत्ति वुच्चइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1158] - उत्तराध्ययन 13 जो गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन नहीं करता, जो गुरु की शुश्रूषा नहीं करता, जो गुरु के प्रतिकूल वर्तन करता है और जो तथ्य को । नहीं जानता; वह ‘अविनीत' कहा जाता है। 457. वाचाल, बहिष्कृत मुहरी निक्कसिज्जइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1158] - उत्तराध्ययन 1/4 वाचाल शिष्य सड़े कानों वाली कुतियाँ की भाँति धत्-धत् करके बहिष्कृत कर दिया जाता है। 458. दुःशील, शूकरवत् कण कुडगं जहित्ताणं, विटें भुंजइ सूयरो । एवं सीलं जहित्ताण, दुस्सीले रमई मिए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1159] . - उत्तराध्ययन 1/5 जिसप्रकार चावलों का स्वादिष्ट भोजन छोड़कर शूकर विष्ठा खाता है, उसीप्रकार पशुवत् जीवन बितानेवाला अज्ञानी, शील-सदाचार को छोड़कर दुःशील-दुराचार को पसन्द करता है। 459. आत्म-हित चाहक विणए ठविज्ज अप्पाणं, इच्छन्तो हियमप्पणो । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 170
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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