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________________ 469. अड़ियल शिष्य मा गलियस्सेव कसं, वयण मिच्छे पुणो पुणो । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160] उत्तराध्ययन 112 बार-बार चाबुक की मार खानेवाले गलिताश्व अर्थात् अडियल या दुर्बल घोड़े की तरह कर्तव्य पालन के लिए पुनः पुनः गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो | 470. सैन्धव शिष्य कसं व दट्टु माइन्नो, पावगं परिवज्जए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1160] उत्तराध्ययन 1/12 जैसे उत्तम जाति का घोड़ा चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है वैसे ही विनीत शिष्य गुरु के इंगिताकार को देखकर पापकर्म - अशुभ आचरण को छोड़ दें । 471. नीचकर्म - त्याग माय चंडालियं कासी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1160] उत्तराध्ययन 110 क्रोधावेश में आकर भी कोई चाण्डालिक कर्म अर्थात् नीचकर्म मत करो । 472. पहले अध्ययन फिर ध्यान कालेण य अहिज्जित्ता, ओझाइज्जएगो । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1160 ] उत्तराध्ययन 110 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 173
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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