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________________ 449. गुण-मूल, विनय विणओ गुणाण मूलं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - धर्मरत्नप्रकरण 1 अधि. 3 गुण सभी गुणों का मूल विनय है। 450. तुख्ने तासीर सौहबते असर संतप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते । मुक्ताकारतया तदेव नलिनी पत्रस्थितम् राजते ॥ स्वात्यां सागरशुक्ति मध्यपतितं तन्मौक्तिकं जायते । प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणाः संसर्गतो देहिनाम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - भर्तृहरिकृत नीतिशतक 67 गरम लोहे पर जल की बूंद पड़ने से उसका नामोनिशान भी नहीं रहता, वही जल की बूंद कमल के पत्ते पर पड़ने से मोती-सी चमकने लगती है और वही जल की बूंद स्वाती नक्षत्र में समुद्र की सीप में पड़ने से मोती हो जाती है । इससे सिद्ध होता है कि संसार में अधम, मध्यम और उत्तम गुण प्राय: संसर्ग से ही आते हैं। (नि:संदेह अधम, मध्यम और उत्तम गुण प्राय: संसर्ग या सौहबत से ही होते हैं । यदि संसर्ग अधम होता है तो मनुष्य अधम हो जाता है और यदि संसर्ग उत्तम होता है तो मनुष्य उत्तम हो जाता है । 451. संगति से गुण-दोष प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणाः संसर्गतो देहिनाम् । .. - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - भर्तृहरिकृत नीतिशतक 67 नि:संदेह अधम, मध्यम और उत्तम गुण मनुष्यों में प्राय: संगति से ही आते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 168
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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