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________________ - व्यवहारभाष्य 7/216 ज्ञान विश्व के समग्र रहस्यों को प्रकाशित करनेवाला है । 445. दुःख-मूल, क्रोध मूलं कोहो दुहाण सव्वाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - धर्मरत्नप्रकरण 1 अधि. 3 गुण सभी दु:खों का मूल क्रोध है । 446. अनर्थ-मूल, मान मूलं माणो अणत्थाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] . - धर्मरत्नप्रकरण । अधि. 3 गुण सभी अनर्थों का मूल अभिमान है । 447. सुख-मूल, क्षमा खंती सुहाण मूलं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - संबोध सत्तरि 70 क्षमा सभी सुखों का मूल है । 448. श्रेष्ठ क्या ? जिण जणणी रमणीणं, मणीण चिंतामणी जहा पवरो । कल्पलया य लयाणं, तहा खमा सव्व धम्माणं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1144] - धर्मरत्नप्रकरण 1 अधि. 3 गुण जैसे सभी स्त्रियों में जिनेश्वर परमात्मा की माता श्रेष्ठ है, सभी रत्नों में चिंतामणि रत्न श्रेष्ठ है और सभी लताओं में कल्पलता श्रेष्ठ है वैसे ही सभी धर्मों में क्षमा ही श्रेष्ठ है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 167
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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