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________________ करुणाशील भव्यात्माएँ जीवहिंसा करके जीना नहीं चाहतीं । 436. अहिंसक समर्थ __ पहु एजस्स दुगुंछणाए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1061] - आचारांग 1AM __ अहिंसक पुरुष वायुकायिक जीवों की हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ हो जाता है। 437. स्वच्छन्दाचारी आरंभसत्ता पकरेंति संगं । a - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1062] - आचारांग 1AM स्वच्छंदाचारी पुरुष आरंभ में आसक्त होकर नई नई आसक्तियाँ और नए-नए बंधनों को बढ़ाते रहते हैं । 438. त्रिवाद शुष्कवादो विवादश्च, धर्मवाद स्तथा परः । इत्येष त्रिविधो वादः कीर्तितः परमर्षिभिः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1081] - हारिभद्रीयाष्टक 12 तत्त्वदर्शियों ने तीन प्रकार का वाद कहा है-शुष्कवाद, विवाद और धर्मवाद । 439. वाचना से निर्जरा वायणाएणं निज्जरं जणयइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1088] - उत्तराध्ययन 2949 वाचना (पठन-पाठन) से निर्जरा होती है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 165
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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