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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 959]
- दशवकालिक 82 . साधुपुरुषों-सज्जनों के साथ सम्पर्क करना चाहिए । 432. सूत्रार्थ गुरुगम्य
निउणो खलु सुत्तत्थो, ण हु सक्को अपडिबोधि तो गाउं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. '971] - नि. भाष्य 5252
- बृह भाष्य 3333 सूत्र का अर्थ अर्थात् शास्त्र का मूलभाव बहुत ही सूक्ष्म होता है, वह आचार्य के द्वारा प्रतिबोधित हुए बिना नहीं जाना जाता । 433. सदोष-निर्दोष कब ? निक्कारणम्मि दोसा, पडिबंधे कारणम्मि निदोसा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 973]
- निशीथ भाष्य 5284 बिना विशिष्ट प्रयोजन के अपवाद दोष रूप है, किंतु विशिष्ट प्रयोजन की सिद्धि के लिए वही निर्दोष है । 434. योग्य में योग्य का आधान जो जस्स उ पाउग्गो, सो तस्स तहिं तु दायव्यो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 974] - निशीथ भाष्य 5291
- ब्रह. भाष्य 3370 जो जिसके योग्य हो, उसे वही देना चाहिए । 435. करुणाशील अहिंसक इह संतिगया दविया णावकरवंति जीविउं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1061] - आचारांग IAM
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 164