________________
दशवैकालिक 6/10
ज्ञानीजन न तो स्वयं हिंसा करे और न ही दूसरों से करवाए ।
-
424. वह वचनगुप्त नहीं
वयण विभत्ति अकुसलो, वओगयं बहुविहं अयाणंतो । जइवि न भासइ किंची, न चेव वयगुत्तयं पत्तो ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 891] - दशवैकालिक नियुक्ति 290
जो वचन-कला में अकुशल है और वचन की मर्यादाओं से अनभिज्ञ है वह कुछ भी न बोले, तब भी 'वचन गुप्त' नहीं हो सकता । 425. निर्ग्रन्थ-बल क्या ?
आगमबलिया समणा निग्गंथा ।
-
श्रमण / निर्ग्रन्थों का बल ' आगम' (शास्त्र) ही है ।
426. व्यवहार, बलवान्
ववहारोऽपि ह बलवं । हु
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 906] व्यवहारसूत्र 10/3
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 934] आव. नि. भाष्य 123
संघ एवं समाज-व्यवस्था में व्यहार ही सबसे बलवान् है ।
ame
427. संघ - व्यवस्था में व्यवहार बलवान्
ववहारो वि हु बलवं, जं छउमत्थं पि वंदड़ अरहा । जा होई आणाभिणो, जाणंतो धम्मयं एयं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 934] आवश्यक नियुक्ति भाष्य 123
संघ-व्यवस्था में व्यवहार महत्त्वपूर्ण है । केवली भी अपने छद्मस्थ
को स्वकर्तव्य समझकर तबतक वंदना करते रहते हैं जबतक कि गुरु उसकी सर्वज्ञता से अनभिज्ञ रहते हैं ।
गुरु
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 162
-
-