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________________ 419. सभी जीव सुख प्रिय सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 888] - दशवकालिक 6nl समस्त प्राणी सुखपूर्वक जीना चाहते हैं । मरना कोई नहीं चाहता । 420. अहिंसा-दर्शन अहिंसा निउणा दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 888] - दशवैकालिक 63 सभी प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना-यही अहिंसा का पूर्ण दर्शन है। 421. प्राणीवध पाप पाणिवहं घोरं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 888] - दशवैकालिक 641 प्राणियों का वध (जीव हिंसा) घोर पाप है । 422. हिंसा त्याज्य जावन्ति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा । ते जाणमजाण वा, न हणे नो विधायए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 888] - दशवैकालिक 600 इस लोक में जितने भी त्रस और स्थावर प्राणी हैं उन सबकी जान-अनजान में हिंसा नहीं करना और न दूसरों से करवाना चाहिए । 423. हिंसा सर्वत्र त्याज्य न हणे नो विघायए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 888] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 161
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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