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410. संयमोपकरण क्यों ?
जं पि वत्थं च पायं वा, कंबलं पायपुच्छन्नं । जं पि संजमलज्जट्ठा, धारन्ति परिहरन्ति य ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 887 ] दशवैकालिक 6/20
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जो भी वस्त्र, पात्र, कंबल और रजोहरण हैं, उन्हें मुनि संयम और लज्जा की रक्षा के लिए ही रखते हैं । किसी समय वे संयम की रक्षा के लिए इनका परित्याग भी करते हैं।
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411. संग्रह - वृत्ति: लोभ-प्रवृत्ति
लोहस्सेस अणुफ्फासो, मन्ने अन्नयरामवि ।
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संग्रह करना यह अंदर रहनेवाले लोभ की झलक है । 412. असत्य, अविश्वसनीय
अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 887] दशवैकालिक 6/13
असत्य, मनुष्यों के लिए अविश्वास का स्थान है । अत: इसका
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 887] दशवैकालिक 6/18
त्याग करें ।
413. बोलो, असत्य नहीं
हिंसगं न मूसं बूया ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 887] दशवैकालिक 6/12
परपीड़ाजनक असत्य मत बोलो।
414. असत्य निंदनीय
मुसावाओ उ लोगम्मि सव्व साहुहिं गरहिओ ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 159