SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 742] - आचारांग 1/5M044 जो कुशल है, वह काम-भोग का सेवन नहीं करता । 375. संशय-परिज्ञान संसयं परिआणओ संसारे परिणाए भवइ । संसयं अपरियाणओ संसारे अपरिणाए भवइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 742] - आचारांग 1/54043 जिसे संशय का परिज्ञान हो जाता है, उसे संसार के स्वरूप का ज्ञान हो जाता है । जो संशय को नहीं जानता, वह संसार को भी नहीं जान पाता। 376. उठो, प्रमाद मत करो __ उट्ठिए नो पमायए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 743] - आचारांग 1/52146 . जो कर्तव्य-पथ पर उठकर खड़ा हो चुका है, उसे पुन: प्रमाद नहीं करना चाहिए। 377. मनुष्य-रूचि पूढो छंदा इह माणवा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 743] - आचारांग 1/52046 इस संसार में मनुष्य भिन्न-भिन्न विचारवाले हैं । 378. दुःख-सुख अपना जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 743] - आचारांग 12/4/82 एवं 120/68 प्रत्येक व्यक्ति का दु:ख-सुख अपना-अपना है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 149
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy