SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 379. शक्ति-सदुपयोग नो निहणिज्ज वीरियं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 744] - आचारांग 1/53051 साधक को अपनी शक्ति कभी नहीं छुपाना चाहिए । 380. समभाव, धर्म समियाए धम्मे आयरिए पवेइए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 744] - आचारांग 1/8/3/207 एवं 1/53451 आर्य महापुरुषों ने समभाव में धर्म कहा है। 381. संशयात्मा, समाधिस्थ नहीं ! वितिगिच्छं समावन्नेणं अप्पाणेणं नो लहइ समाहिं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 745] . - आचारांग 1/5/5061 संशयात्मा को कभी समाधि नहीं मिलती । 382. मिथ्यादृष्टि असमियंति मन्नमाणस्स समिआ वा असमिआ होइ उवहाए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747] - आचारांग 1/5/5 व्यवहार वास्तव में सम्यग् हो या असम्यग, किंतु असम्यक्त्व को माननेवाले के लिए माध्यस्थभाव के कारण वह मिथ्यात्व रूप ही होता है । 383. आत्मा, शाश्वत न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता न भूयः । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 150 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy