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________________ 370. सारभूत ज्ञान धम्मपि य नाणं सारियं विति । ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741] - आचारांग नियुक्ति 245 पृ. 132 धर्म में भी सारभूत तत्त्व ज्ञान है । 371. मूर्ख-धारणा एत्थवि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं असरणे सरणंति मन्नमाणे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 742] - आचारांग 1/50 मूर्ख दुःखों में पचता रहता है, फिर भी पाप करने में आनंद मानता है, अशरण को भी शरण मानता है। 372. मोह एत्थ मोहे पुणो पुणो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 742] . - आचारांग 1/5M इस जन्म-मरण की परंपरा में मोह बार-बार आकर्षित करता रहता है। 373. रूपासक्ति-परिणाम एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे एत्थ फासे पुणो पुणो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 742] - आचारांग 1/5M जो मनुष्य रूपादि इन्द्रिय-विषयों में आसक्त हैं, वे विषयों में खिंचे जा रहे हैं और इस प्रवाह में बार-बार दुर्गति के दु:खों को भोगते रहते हैं । 374. कुशल कौन ? जे छेए सागारियं न सेवइ । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 148
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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