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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731]
- आचारांग 123 जो राग-द्वेष को पार नहीं कर पाए हैं, वे संसार-सागर से पार नहीं हो सकते। 337. मृत्यु, मेहमान नत्थि कालस्सणागमो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731]
- आचारांग 128 मृत्यु किसी भी समय आ सकती है। उसके लिए कोई भी क्षण निश्चित नहीं है। 338. शाश्वत सुखाकांक्षी इणमेव नावकंवंति जे जणा धुवचारिणो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731] ' - आचारांग 120/80
जो पुरुष शाश्वत सुख-केन्द्र मोक्ष की ओर गतिशील होते हैं, वे ऐसा विपर्यासपूर्ण (सुख के बदले दुःख पूर्ण) जीवन नहीं चाहते । 339. भवपार नहीं अणोहंतरा एए नो य ओहं तरित्तए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731] .
- आचारांग 123 जो मनुष्य वासना के प्रवाह को नहीं तैर सकते हैं, वे संसार के प्रवाह को कभी नहीं तैर सकते। 340. मूढ़, सत्य-पथ में स्थित नहीं आयाणिज्जं च आयायतंमि ठाणे न चिट्ठइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731]
- आचारांग 123 मूढ पुरुष सत्य-मार्ग को प्राप्त करके भी उस स्थान में स्थित नहीं हो पाता।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 140