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332. ऊँच-नीच गोत्र में जन्म
से असई उच्चगोए, से असई नीआगोए । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 729]
- आचारांग 1237 यह जीवात्मा अनेक बार उच्च गोत्र में और अनेक बार नीच गोत्र में जन्म ले चुकी है। 333. न हर्षित, न कुपित तम्हा पंडिए नो हरिसे नो कुप्पे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 729]
- आचारांग 1/23/07 साधक को उच्च या निम्न किसी भी परिस्थिति में न हर्षित होना चाहिए और न ही कुपित । 334. उपदेश जाइ मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731]
- आचारांग 1/23 जन्म-मरण के स्वरूप को भली भाँति जानकर दृढ़तापूर्वक मोक्ष पथ पर बढ़ते रहें। 335. मन्दबुद्धि विवेकशून्य
कुराई कम्माइं बाल पकुव्वमाणे तेण 'दुक्खेण संमूढं विप्परियासमुवेइ । ..
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 731-741]
- आचारांग 12/4, 128, 1/5/6, 1/5n ___ मंद बुद्धिवाला क्रूर कर्म करता हुआ और उसी दु:ख से विवेक शून्य होकर अन्त में विपरीत दशा को प्राप्त होता है । 336. राग-द्वेषी, भवपार नहीं
अपारंगमा एए नो य पारंगमित्तए । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 139
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