________________
323. मोहावृत्त पुरुष मंदा मोहेण पाउडा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 727]
- आचारांग - 12/2 मंदमति मनुष्य मोह से घिरे हुए होते हैं। 324. मुक्त कौन ? विमुत्ता हु ते जणा जे जणापारगामिणो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 727]
- आचारांग 1/2274 जो जन कामनाओं को पार कर गए हैं, वे निश्चय ही मुक्त हैं। 325. निष्काम साधक
लोभमलोभेण दुगुंछमाणे लद्धे कामे नाभिगाहइ । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 727]
- आचारांग - 12274 . अलोभ से लोभ को तिरस्कृत करनेवाला साधक प्राप्त कामभोगों का भी सेवन नहीं करता। 326. न घर का न घाट का एत्थ मोहे पुणो पुणो सन्ना, नो हव्वाए नो पाराए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 727]
- आचारांग - 12203 बार-बार मोहग्रस्त होनेवाले व्यक्ति न इस पार आ सकते हैं और न ही उस पार जा सकते हैं। 327. ज्ञाता-द्रष्टा विणा वि लोभं नीक्खम एस अकम्मे जाण पासइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 727] - आचारांग - 12275
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 137