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________________ सुविशुद्ध शील-सदाचार सम्पन्न विनीत व्यक्ति इस लोक में यश कीर्ति पाता है और सबका प्रिय बन जाता है एवं परलोक में भी सद्गति IT भागी बनता है । 319. लोक-स्वरूप अणते नितिए लोए, सासए न विणस्सइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 723] सूत्रकृतांग 11/46 यह लोक द्रव्य की अपेक्षा से अनंत, नित्य और शाश्वत है । इसका - कभी नाश नहीं होता । 320. कषाय चौकड़ी - वर्जन “उक्कसं जलणं णूमं, मज्झत्थं च विचिए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 724] सूत्रकृतांग - 11/4/12 संयमरत साधक क्रोध - मान माया और लोभ का परित्याग करें । - 321. जन्म-मरण-चक्र माया मेति पिया मे, भगिणी भाया य पुत्तदारा मे । अत्थम्मि चेव गिद्धा, जम्ममरणाणि पावंति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 725] आचारांग नियुक्ति 186 पू. 67 माता-पिता, भगिनी, भ्राता, पत्नी पुत्रादि एवं धन में जो आसक्त - - हैं, वे जन्म-मरण को प्राप्त करते हैं । 322. आज्ञारहित मुनि अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 727] आचारांग 12/2 वीतराग आज्ञा से बाहर मुनि विषयों की ओर ताकने लगते हैं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6• 136 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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