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315. जीवाजीवाधार अजीवा जीव पइट्ठिया, जीवा कम्म पइट्ठिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 714]
- भगवतीसूत्र 1/6 जड़ पदार्थ जीव के आधार पर रहे हुए हैं और जीव (संसारी प्राणी) कर्म के आधार पर रहे हुए हैं। 316. न भूतो न भविष्यति
णं एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा, जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 715]
- स्थानांग - 100/704 न ऐसा कभी हुआ है, न होता है और न कभी होगा ही कि जो चेतन हैं वे कभी अचेतन-जड़ हो जाएँ और जो जड़-अचेतन हैं वे कभी चेतन हो जाएँ। 317. पुद्गल-स्वभाव
सुरुवा पोग्गला दुरुवत्ताए परिणमंति । दुरुवा पोग्गला सुरुवत्ताए परिणमंति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 721]
- ज्ञाताधर्मकथा - 12 सुरुप पुद्गल (सुन्दर वस्तुएँ) कुरुपता में परिणत होते रहते हैं और असुन्दर वस्तुएँ सुरुपता में। 318. शीलसम्पन्न विनीत सुविसुद्धसीलजुत्तो पावइ कीत्तिं जसं च इहलोए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 722-1181] - धर्मरत्न प्रकरण 1/8
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 135