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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 595] - कल्पसुबोधिका सटीक श्लोक 2 व्यक्ति के जैसे नेत्र होते हैं वैसा ही उसका सदाचार होता है, जैसी नासिका होती है वैसी ही सरलता होती है। जैसा रूप सौन्दर्य होता है वैसा ही धन होता है और जैसा शील-सदाचार होता है, ठीक वैसे ही उसमें गुण होते हैं। 312. गर्जत सो वर्षत नहीं गर्जति शरदि न वर्षति, वर्षति वर्षासु निःस्वनो मेघः। नीचो वदति न कुरुते, न वदति साधु करोत्येव ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 697] . - कल्पसुबोधिका टीका - 1/5 नीतिद्विषष्टिका ( अनुबन्ध - 29) बादल शरदऋतु में केवल गरजता है, बरसता नहीं और वर्षाऋतु में बिना गरजे ही बरसता है । इसीतरह नीच व्यक्ति बोलता है, करता कुछ नहीं, परन्तु सज्जन पुरुष बोलता नहीं, किन्तु करता है । 313. थोथा चना बाजे घणा असारस्य पदार्थस्य, प्रायेणाडम्बरो महान् । न हि स्वर्णे ध्वनिस्ताद्दग, याद्दक कांस्ये प्रजायते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 697] - कल्पसुबोधिका टीका 1/5 यशस्तिलक चंपू 1/35 नि:सार पदार्थ का प्राय: आडम्बर अधिक होता है । सोने की उतनी आवाज नहीं होती, जितनी आवाज काँसी के बर्तन में होती है । 314. हाथ कंगन को आरसी क्या ? 'मातुः पुरो मातुलवर्णनं तत् । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 697] - कल्पसुबोधिका 1/5 माता के सामने मामा का वर्णन करना वाणी का विलास है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 134
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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