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पासवण निरोहेण अद्धाण गमणेणं भोयण पडिकूलताए इंदियस्थ विकोवणयाते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 579]
- स्थानांग - 90/667 नौ कारणों से रोगों की उत्पत्ति होती हैं । जैसे - (१) अधिक बैठे रहने से या अधिक भोजन करने से । (२) अहितकर आसन से बैठने से या अहितकर भोजन करने से । (३) अति निद्रा से । (४) अति जागरण से। (५) मलवेग को रोकने से। (६) मूत्र के वेग को रोकने से ।
(७) अधिक भ्रमण (मार्ग गमन)से । ... (८) भोजन की प्रतिकूलता से ।
(९) अतिविषय से या कामविकार से । 310. कर्मण की गति न्यारी !
माता भूत्वा दुहिता, भगिनी भार्या च भवति संसारे । व्रजति च सुतः पितृत्वं, भ्रातृत्वं पुनः शत्रुतां चेव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 594]
- प्रशमरति 156 कर्मानुसार संसार में जीव पूर्वजन्म की माता, जन्मान्तर में बेटीबहन और पत्नी बनती है....और पुत्र मरकर पिता, भ्राता तथा शत्रु बनता है । इसप्रकार कर्म का चक्र चलता रहता है । 311. यथा आकृति तथा गुण
यथा नेत्रे तथा शीलं, यथा नासा तथार्जवम् । यथा रूपं तथा वित्तं, यथाशीलं तथा गुणः ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 133