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306. तीर्थ-यात्रा - फल
एक भक्ताशनान्नित्यमग्निहोत्रफलं भवेत् । अनस्तभोजननित्यं; तीर्थयात्रा फलं लभेत् ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 510] स्कन्दपुराण- कपालमोचनस्तोत्र
हमेशा एकबार भोजन करने से अग्निहोत्र का फल मिलता है और जो सूर्यास्त के पूर्व भोजन करते हैं, उन्हें हमेशा तीर्थयात्रा का फल मिलता है ।
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307. रात्रि - वर्जित कार्य
नैवा हुति र्न च स्नानं दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 510] योगशास्त्र 3/56
रात्रि में होम, स्नान, श्राद्ध, देवपूजन या दान करना उचित नहीं है, किन्तु भोजन तो विशेष रूप से निषिद्ध है 1
308. रात्रि - भोजन वर्जित
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सव्वाहारं न भुंजंति, निग्गंथा राइ भोअणं ।
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न श्राद्धं देवतार्चनम् ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 510] दशवैकालिक 6/26
निर्ग्रथ मुनि, रात्रि के समय किसी भी प्रकार का आहार नहीं करते।
309. रोगोत्पत्ति - कारण
णवहिं ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया -
अच्चासणाते
अहितासणाते
अतिणिद्दाए
अतिजागरितेण
उच्चार निरोहेण
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 132