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________________ उत्तराध्ययन 28/2 सर्वज्ञ - सर्वदर्शी परमात्मा ने फरमाया है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना ही मोक्ष मार्ग है । 281. आत्मा, ज्ञाता नाणेण जाणइ भावे | sayyom - उत्तराध्ययन 28/35 आत्मा ज्ञान से पदार्थों को जानती है । 282. मोह से जन्म-मरण मोहेण गब्धं मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 456] आचारांग 1/5A/142 अज्ञानी मोह से बार-बार गर्भ में आता है, जन्म-मरणादि पाता है । इस जन्म-मरण की परम्परा में उसे बार-बार मोह (व्याकुलता ) उत्पन्न होता है । ― श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 448 ] - 283. अहं ब्रह्मास्मि शुद्धात्मद्रव्यमेवाहं, शुद्धज्ञानं गुणो मम । नान्योऽहं न ममान्ये, चेत्यहो मोहास्त्रमुल्बणम् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 457 ] - - ज्ञानसार - 4/2 मैं शुद्ध आत्मद्रव्य हूँ और शुद्ध ज्ञान ' मेरा' स्थायी गुण है । मैं उससे अलग नहीं हूँ । उसके बिना अन्य कोई 'मैं' या 'मेरा' नहीं है । इस प्रकार की दृढ मान्यता ही मोह निकन्दन के लिए अतितीक्ष्ण शस्त्र है । 284. "मैं और मेरा" अहं ममेति मन्त्रोऽयं मोहस्य जगदान्ध्यकृत् । अयमेव हि न पूर्वः, प्रतिमंत्रोऽपि मोहजित् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 457] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 125
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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