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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 439] - ओघनियुक्ति 53 जो और जितने हेतु संसार के हैं, वे और उतने ही हेतु मोक्ष के हैं। 264. चरित्र महान् चरणगुण विप्पहीणो, वुड्ढइ सुबहुपि जाणतो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 442] - आवश्यकनियुक्ति 97 जो साधक चारित्र के गुणों से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है । 265. ज्योतिहीन दीपक दीवसयसहस्स कोडी वि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 442] - आवश्यकनियुक्ति - 98 . उन करोड़ों दीपकों से भी क्या लाभ है ? जिनमें ज्योति नहीं है ? 266. अन्धे को दीपक दिखाना सुबहुंपि सुयमहियं, किं काही चरणविप्पहाणस्स । अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्स कोडिवि ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 442] - आवश्यकनियुक्ति.98 - शास्त्रों का बहुत सा अध्ययन भी चरित्रहीन के लिए किस काम का ? क्या करोड़ों दीपक जला देने पर भी अन्धे को कोई प्रकाश मिल सकता है ? 267. शास्त्र, ज्योति अप्पं पि सुयमहियं, पगासयं होइ चरणजुत्तस्स । एक्को वि जह पइवो स चक्खु अस्सो पयासेइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 443] - आवश्यकनियुक्ति 99 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 121
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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