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________________ 259. अब्रह्मचर्य त्याज्य अबंभचरियं घोरं, पमायं दुराहिट्ठियं । नायरंति मुणी लोए, भेयाययण वज्जिणो ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 426] दशवैकालिक - 6/15 जो मुनि संयम-विघातक दोषों से दूर रहते हैं, वे लोक में रहते हुए भी प्रमाद का घर और असेव्य भयंकर अब्रह्मचर्य का कभी आचरण नहीं करते । 260. अब्रह्मचर्य, महादोषों का स्रोत मूलमेयमहम्मस्स महादोस समुस्सयं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 427] दशवैकालिक 6/16 अब्रह्मचर्य अधर्म का मूल और महादोषों का स्रोत स्थान है । - 261. मोक्ष एक एगे मोक्खे | - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 431] स्थानांग 1A आठ कर्मों के नाश की दृष्टि से मोक्ष एक है | 262. महान् अनर्थकर तपोधनानां पादेन स्पर्शनं महते अनर्थाय संपद्यते । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 438] द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका सटीक 13/6 तपस्वियों को अपने पैर का स्पर्श हो जाना (पैर की ठोकर लगना) - भी महान् अनर्थकारक होता है । 263. संसार - मोक्ष - हेतु जे जत्तिया य हेउ भवस्स, ते चेव तत्तिया मोक्खे । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 120
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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